दादरी के बिसाहड़ा गाँव में इन्डियन एयरफोर्स में कार्यरत
मोहम्मद सरताज के भाई दानिश और पचास वर्षीय पिता मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या करने के
लिए दो हजार से ज्यादा लोग मंदिर से हुए उस एलान के बाद आये थे जिसमे कहा गया था
की अख़लाक़ की फ्रिज में गाय का मांस है. हजारों की संगठित भीड़ जिसे एक दर्जन लोग
लीड कर रहे थे ने गाँव के बीच में अख़लाक़ के घर पर रात में करीबन आठ बजे हमला बोल
दिया. दानिश और उसके पिता जान बचाने के लिए घर के उपरी मंजिल पर बने कमरे में भाग
गए लेकिन भीड़ ने दरवाज़ा तोड़ कर उन्हें बाहर खींच लिया. इस सबके बीच दानिश की
बुजुर्ग दादी की आँख पर चोट की गई और रहम की भीख मांग रही बहन साजिदा की एक न सुनी
गई.
अख़लाक़ और दानिश को लोहे की राड,हाकी
स्टिक, और घर में पड़ी लोहे की सिलाई मशीन से वार करके मारा गया और जब उनके मर जाने
का इत्मीनान हुआ तो भीड़ वहां से निकल कर सड़क पर आई. वारदात पर पहुँचने के लिए
पुलिस गाँव आती है तो भीड़ पुलिस पर पथराव शुरू कर देती है. यह सब लगभग दो घंटे तक
चलता रहा. पुलिस पर पथराव के अलावा कुछ गाड़ियों को भी जला दिया गया.
दादरी में इस तरह की यह पहली घटना नहीं
है. इसके पहले भी बिसाहडा से 18 किलोमीटर दूर कैमराला गाँव में 1 अगस्त 2015 को
तीन मुस्लिम युवकों अनस,आरिफ और नाज़िम को गौ तस्करी के आरोप में भीड़ ने हाइवे पर
रोक कर पीट पीट कर जान से मार दिया. इस मामले में पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ केस
दर्ज किया था लेकिन गिरफ्तारी आज तक किसी की नहीं हो सकी. गौ तस्करी का आरोप भी
झूठा साबित हुआ क्योंकि उनकी गाड़ी में मौके से दो भैंस बरामद हुई थी.
लेकिन बड़ा सवाल यहाँ ये उठता है कि गाय या
भैंस की तस्करी हो अथवा उसके मांस का सेवन ,भारतीय दंड संहिता की ऐसी कौन सी धारा
है जिसमें यह लिखा गया हो की ऐसा करने वाले लोगों खासकर मुसलमानों को जान से मार
देने का हक़ हिन्दुओं को प्राप्त है. दिल्ली,मुंबई समेत हर बड़े होटल के रेस्टोरेंट
में बीफ से बना व्यंजन मिल जाता है. हमारा देश बीफ एक्सपोर्ट में दुनिया का सबसे
बड़ा देश है. मोदी सरकार ने पशु वध के लिए इस्तेमाल में लाई जाने वाले बड़ी मशीनों
पर टैक्स कम कर दिया है. जैसे यूपीए शासन काल में मांस व्यापार को सब्सिडी मिलती
थी वैसे ही मोदी सरकार भी सरकारी सहायता प्रदान कर रही है.
गौ हत्या का विषय क्या सच में धर्म और आस्था के प्रश्न से जुड़ा हुआ है, कुछ हद तक यह धार्मिक हिन्दुओं के साथ जुड़ा तो है लेकिन वे हिन्दू इसका राजनीतिकरण करने से बचते रहे हैं. जिन्हें गाय से प्रेम है वे उसका साथ अंत तक नहीं छोड़ते. लेकिन ऐसे हिन्दुओं की संख्या बेहद कम है. मैं जहाँ रहता हूँ वहां विभिन्न जाति के लगभग दस हजार से अधिक हिन्दू रहते हैं लेकिन किसी के भी घर में गाय नहीं है. ज़्यादातर के घरों में कुत्ता मिल जाता है. यादवों के पास गाय से अधिक भैंस मिलती है.
हाल ही में मुझे इस बात का एहसास बहुत
करीब से हुआ की गाय अथवा किसी भी जानवर से सच्चे प्रेम का क्या अर्थ है. एक मित्र
के नाना नानी की मृत्यु के उपरान्त उनके साथ रहने वाली गाय बेहद अकेली हो गयी जिस
कारण से उसकी सेहत तेजी से गिरने लगी. मुश्किल से दो महीने के भीतर वह उठने काबिल
भी नहीं रही. हालात यहाँ तक ख़राब हो गए कि मित्र के पिता जी को उस गाय की देखभाल
के लिए जाना पड़ा. करीब पांच सौ किलोमीटर दूर जा कर उन्होंने गाय की रात दिन सेवा
की. एक समय ऐसा भी आया की गाय के बैठी रहने की वजह से उसके चमड़े तक घिस गए. मैंने
सुझाव दिया की उसे जहर का इंजेक्शन दे कर इस दर्द से मुक्त कर दीजिए,लेकिन
उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया.
यह तो हुई गाय से जुड़ी धार्मिकता और लगाव ,जो बहुत कम देखी जाती है. लेकिन गाय को राजनीतिक पशु बनाने के पीछे जो लोग कार्यरत हैं वे हैं गौ रक्षा के नाम पर हाइवे पर रात में बीफ एक्सपोर्ट की गाड़ियों पर हमला करने वाले , सरेआम गाय को लेकर बयानबाजी करने वाले और सुरक्षा की आड़ में कसाई को बेचने वाले.
उत्तर प्रदेश से वर्तमान में एक लोकसभा सांसद चुन कर गए हैं. कई वरिष्ठ पुलिसकर्मी और अधिकारियों एवं पत्रकारों तथा आम जनता के बीच यह चर्चा आम है की वे गौ रक्षा के नाम पर पशु तश्करों से पैसा ले कर पहले विधायक बने और अब सासंद.
गाय का राजनीतिकरण आम भारतियों के लिए कभी
सुखद नहीं रहा. मंगल पाण्डेय के साथ एक मिथक जोड़ दिया गया की उनके कारतूस में गाय
की चर्बी मिली होती थी जिससे नाराज़ हो कर उन्होंने विद्रोह कर दिया. यह गाय को अतिमहत्वपूर्ण
और धार्मिक पवित्रतता दिलाने का सबसे पहला प्रयास था इसके बाद धीरे धीरे आज़ाद
हिन्दुस्तान में बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावुकता इससे जोड़ी गई. यह काम बाकायदा
हर राजनीतिक दल ने किया लेकिन बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने के बाद मुद्दों के आभाव
में भाजपा और आर एस एस ने हिंदी भाषी राज्यों में गौ रक्षा के नाम पर बेहद खतरनाक
रणनीति पर काम किया जिसका नतीजा है दादरी.
दादरी के दंश पर देश के
मुखिया की चुप्पी और उनके ही पार्टी के विधायक एवं मंत्रियों द्वारा खुलेआम
हत्यारों का पक्ष लेना भाजपा की उस रणनीति की पोल खोलता है जिसमें वह ‘पिंक
रिवोल्यूशन’ पर विरोध भी दर्ज करवाती है और उसी ‘पिंक रिवोल्यूशन’ को बढ़ावा देने
के लिए सब्सिडी प्रदान करती है. शासक वर्ग धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल मात्र वोट
पाने के लिए करते हैं,उनमें हिन्दू हित वाली भाजपा सबसे आगे है. मांसाहार पर रोक
थाम की हर संभावित पहल भाजपा अपने राज्यों में कर रही है लेकिन वह विदेशों में
मांस निर्यात पर रोक लगाने के बजाये उसे मदद कर रही है. आम हिन्दुओं के बीच यदि
कुछ लोग इन बातों को पहुंचा सकें तो शायद समझ बदले और कुछ अच्छा नतीजा सामने आये
वरना गाय पर सियासत होगी और उसकी चपेट में दोनों ओर से लोग ही आएंगे,नेता नहीं.
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