Thursday 10 July 2014

हमने अपने बीच कुछ भी बाकी नहीं छोड़ा -2

स्वेताम्बरा,
मुझे नहीं पता की हमारे बीच जो था वह प्रेम था या कुछ और लेकिन मुझे इतना पता है की वह जो भी था एक बेहतरीन एहसास था. जिसकी याद मेरे मन में आज भी वैसे ही जीवित है जैसे उन दिनों थी जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ कर शिमला की ऊँची नीची और ढलान भरी सड़कों से गुजरा करते थे. 
मैं तुम्हे ख़त लिख रहा हूं इसे किसी भी तरह के प्रेम पत्र या फिर से वापस आ जाने की विनती के तौर पर न लेना क्योंकि जीवन के और हमारे रिश्ते की सारी सच्चाइयों से अब मैं रूबरू हो चुका हूं. तुमसे बिछड़ने या तुम्हे खुद से अलग करने का न तो मेरा मन था न ही ऐसा कभी सोचा था पर जाने अनजाने में वह सब होता गया जो न तुम्हे पसंद था, और अब वह मुझे भी पसंद नहीं. इस बात को समझने में मैंने बहुत देर कर दी और तुम मुझसे कोसो दूर चली गई. इस सच को मैंने तब नहीं स्वीकारा था की मैं कहीं न कहीं से गलत हूं जब तुम मेरे साथ रह कर मुझसे समझाया करती थी ,पर जैसे ही तुम मुझसे दूर गई ,तुम्हारी कमी ने मुझे रिश्ते के इस पहलु की तरफ गौर करने का मौका दिया. 
अपने भीतर के इस साकारत्मक बदलाव से मैं खुश होता हूं पर जैसे ही तुम्हारा ख्याल आता है यह ख़ुशी कहीं खो सी जाती है क्योंकि अब तुम नहीं हो मेरे पास जो यह देख सके कि दीपक बिल्कुल वैसा बन गया है जैसा तुम दीपक को देखना चाहती थी. तुम्हारी समझ और तुम्हारी बातों को मैं अपने आस पास रहने वाले लोगों के मुकाबले हमेशा कम वजन देता था ,और इस बात को स्वीकार लेने में मुझे तनिक भी अफ़सोस नहीं, क्योंकि यही सच्चाई है और सच बोलने से अब न तो मुझे वे सारे दिन वापस मिल जाएंगे और न तो मेरे हालात पहले जैसे हो जाएंगे. पर कहीं भीतर एक उम्मीद आज भी ज़िंदा है की मुझ जैसे छोटे शहर और कसबे से आने वाले लड़के को तुमने इतने मौके दिए पर मैंने ही उसे गंवा दिए. तब मुझे तुम्हारी कमी का एहसास नहीं था पर अब जब मैं गुड़गांव जैसे बंजर और खाली शहर में सब कुछ होते हुए भी अधुरा महसूस करता हूं तो लगता है ये अधूरापन तुम्ही हो ,यह तुमसे ही भरा जा सकता है.
क्या एक अंतिम मौक़ा मुझे नहीं दिया जा सकता स्वेताम्बरा ? न सही प्रेमी के रूप में ,दोस्त की शक्ल में ही सही ,ताकि तुमसे बातें कर सकूं ,तुम्हे बता सकूं की दिन भर क्या बीती मुझ पर और रात को कैसे नींद आँखों से दूर रही ,ताकि बता सकूं की आज मैंने इस रंग की शर्ट पहनी है और पूछ सकूं की बताओ स्वेताम्बर इस पर कौन सी पेंट पहनू, क्या एक आखिर मौका मुझे इसलिए नहीं मिल सकता क्योंकि मैंने तुम्हारा दिल दुखाया ,तो जो मुझ पर बीती उसका क्या ? चलो जाने दो ,वो तो मेरी ही वजह और मेरी ही गलतियों का परिणाम था जो मैं अकेला हुआ पर आज ही नहीं बल्कि बिछड़े हुए दिन से मैं वापस आना चाहता हूं तुम्हारे पास .
बहुत जाहिर सी बात है की जब हम प्रेम में होते हैं तो प्रेम की अहमियत नहीं मालूम चलती पर जैसे ही उस प्रेम से दूर होते हैं वैसे ही उसका असर हमारे मन से लेकर हर एक कार्य तक में दिखने लगता है. 
पता है स्वेताम्बरा ,मैं आज भी तुम्हारी फेसबुक की टाइमलाइन को निहारता हूं और खोजता हूं की मैं उसमे कहाँ हूं ,और यकीन मानों ,मैं हमेशा उसमे खुद को पाता हूं ,मुझे पता है न तुम मुझे भुला पाई हो न तो मैं ,फिर जीवन को ऐसे क्यों जिया जाए ? न तो मेरी तरफ से अब कोई शर्त होगी न ही कोई दबाव ,न तो मैं ये कहूंगा की तुम मेरी बन कर रहो ,पर इतना तो हो सकता है की हम बात कर सके . मुझे उम्मीद है की मेरी इस बात पर तुम गौर करोगी ,तुम्हारा जवाब न भी मिला तो मैं हमेशा इंतज़ार करूँगा.
इंतज़ार ही क्यों करना ,क्यों न हम बात करें ,मैं पहल करूँगा ,बस तुम मेरा फोन उठा लेना. मैं चाहता हूं की तुम अपनी ज़िंदगी में तरक्की करो और नई कामयाबी हासिल करो ,लोग तुम्हे अच्छे मिले और तुम हमेशा खुश रहो ,एक दोस्त इसके आलावा कोई और दुआ दे भी नहीं सकता, मैं खुशनसीब होऊंगा अगर मुझे तुम्हारी दोस्ती में छोटी सी जगह मिल जाए तो ,हां जहां तक प्रेम की बात है तो उसकी परवाह तुम न करना ,मेरा प्रेम तुम्हे कभी किसी परेशानी में नहीं डालेगा ,यही एक वादा तुमसे करना है,अब फिर वैसे हालात नहीं बनेंगे जैसे पहले कभी बन गए थे.
जब तक तुम इसे पढ़ रही होगी तब तक मैं खुद को फिर उन्ही पुरानी यादों में ले जाऊंगा और जैसे ही तुम इसे पढ़ चुकी होगी मैं तुमसे बात करूँगा ,क्योंकि दोस्ती और प्रेम में गुस्सा करके हम सिर्फ समय गंवाते हैं ,खुशियाँ खो देते हैं ,हासिल सिर्फ आंसू होते हैं ,मुस्कराहट नहीं.
तुम्हारा दोस्त और तुम्हारी यादों से मोहब्बत करने वाला,


दीपक