Tuesday 11 November 2014

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाम सेक्यूलर दिखना है

मुख्यधारा की मीडिया स्त्रियों,दलितों ,शोषितों और अल्पसंख्यकों के प्रति हमेशा से दोहरापन अख्तियार किए हुए है. यह कोई आरोप नहीं बल्कि सिद्ध हुआ सच है. मुसलमानों के मुद्दों से जुड़ी हुई बातों के प्रति हिंदी और अंग्रेजी की पत्रकारिता एवं मीडिया संस्थान जितने पूर्वाग्रही हैं उतना किसी अपराधी के प्रति पुलिस भी नहीं हुआ करती.
वर्तमान में सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड मजबूती से अपनी पकड़ बना रहा है जिसमें मुसलमानों को यह सोचने और स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाने लगा है की आपकी संस्कृति, सभ्यता, भाषा और व्यवहार आम नागरिकों से बहुत अलग और दयनीय है. इसमें तथाकथित प्रगतिशील बदलाव की बेहद ज़रूरत है यदि ऐसा नहीं किया गया तो आप की गिनती पुरातनपंथी, दकियानूसी और कठमुल्ले में की जाएगी. यह दबाव की राजनीति न सिर्फ भगवा ब्रिगेड की तरफ से अपितु सोशल मीडिया के कथित वामपंथियों की तरफ से भी हो रही है.
भगवा खेमे में एक लम्बे वक्त से सेक्यूलरवाद को लेकर मिथ्याप्रचार हो रहा है जिसका असर अब कम्युनिस्टों में साफ़ तौर पर देखा जाने लगा है. हाल ही में गोविंद वल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में ‘बहुसंख्यक राजनीति और हिंदुत्व’ पर एक सेमीनार आयोजित किया गया जहां बहुत सारे वक्ताओं में शामिल महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विवि, वर्धा के पूर्व कुलपति वीएन राय ने भी अपने विचार रखे. वीएन राय खुद को कम्युनिस्ट कहते हैं और उन्हें कम्युनिस्ट के तौर पर स्वीकार भी किया जाता है. उनका कहना था, ‘वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमला होता है, सबको पता है वह हमला ओसामा ने करवाया था. फिर मुसलमान उसकी आलोचना क्यों नहीं करते. जब कहीं देश में ब्लास्ट होता है तो मुस्लिम लड़के पकड़े जाते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ऐसे आतंकियों का समर्थन करते हुए इनके पकड़े जाने पर सवाल उठाते हैं. मुंबई ब्लास्ट में बहुत सारे लोग मारे गए और मुसलमान कहते हैं की ब्लास्ट में कोई बड़ी साज़िश की गई थी मुसलमानों को बदनाम करने के लिए.’ इस गोष्ठी में आरएसएस के पूर्व प्रचारक गोविन्दाचार्य भी शामिल थे.
वीएन राय ने यह सब इसलिए कहा क्योंकि उनका मानना था सेक्युलरिज्म के लिए सिर्फ बहुसंख्यकों की आलोचना नहीं होनी चाहिए बल्कि अल्पसंख्यक उभार पर भी चोट करते रहना चाहिए. यहां कई महत्वपूर्ण सवाल उभरते हैं. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले की कई कहानियां हैं, यदि उसके दूसरे पक्षों पर बात कोई करता है तो उसकी आलोचना क्यों की जानी चाहिए. न सिर्फ मुसलमान बल्कि दुनिया भर के चुनिंदा लोग अमेरिका पर हुए हमले की थ्योरी के कई पक्ष से लोगों को रूबरू करवाते रहते हैं.  मुंबई हमले से पहले उग्र हिंदुत्व और देश के भीतर मुसलमानों को निशाना बना कर किए गए हमलों को एटीएस चीफ़ हेमंत करकरे और उनकी टीम ने सबके सामने खोल कर रख दिया. करकरे और उनकी टीम इस हमले में सबसे पहले निशाना बनती है. करकरे की पत्नी ने सरकार से किसी भी तरह की मदद लेने से इंकार करते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की थी जिसका आज तक कुछ पता नहीं चला. तो क्या हेमंत करकरे की पत्नी और उनका परिवार धर्मनिरपेक्षिता के लिए ख़तरा बन गया और हम सब उनकी आलोचना करें. राय साहब को शायद पता नहीं है की हर महीने सर्वोच्च अदालत से ऐसे मुस्लिम युवा बरी हो जाते हैं जिन्हें पुलिस ने आतंकवाद के आरोप में दस से पन्द्रह सालों तक जेल में बंद रखा. तो क्या न्यायिक प्रणाली में अपने हक़ के लिए संघर्ष करने वाले लोगों को फांसी पर चढ़ा देना चाहिए. इन नौजवानों से उनके न्यायिक अधिकार छीन लेने चाहिए क्योंकि बहुसंख्यक कट्टरता के खिलाफ हम हमेशा बोलते लिखते हैं तो हमें अल्पसंख्यकों के खिलाफ भी लिखने बोलने के लिए जगह और ज़मीन चाहिए.
धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण का अर्थ यह नहीं है की हम सही को गलत और गलत को सही कहें. इसका तो सिर्फ इतना मतलब निकलता है की धर्म और जाति या अवसरवादिता के मोह में फंस कर हम पक्षपात न करें.
सेक्यूलर और भगवा खेमे के दबाव का ही असर है की अलीगढ़ मुस्लिम विवि की स्नातक छात्राओं के एक गुट द्वारा उठाए लाइब्रेरी के मुद्दे पर संस्थान की ज़बरदस्त आलोचना की जाने लगी. सोशल मीडिया पर मैंने अजीब ओ गरीब तर्क देखें. एक कम्युनिस्ट साथी के फेसबुक पर वाल पर किसी संघी मित्र ने फोटो पोस्ट की है जिसमे उसने लिखा है, ‘कहां गए वे वामपंथी जिन्होंने आर एस एस दफ्तर के सामने चुम्बन अभियान चलाया था अब वे सब एएमयू के सामने किस आफ लव क्यों नहीं चलाते.’
इस फोटू के दस मिनट के बाद ही उस कम्युनिस्ट साथी के वाल पर यह स्टेट्स आया जिसमे लिखा था, ‘दिल्ली विवि में पोस्ट ग्रेजुएशन में लड़कियों और लड़कों को लाइब्रेरी में जाने की अनुमति है लेकिन एएमयू के महिला कालेज की लड़कियों को मुख्य लाइब्रेरी से दूर रखा गया है.’
वामपंथी साथी ने कितनी धूर्तता और चालाकी से दिल्ली विवि को प्रगतिशील और एएमयू को मध्ययुगीन बना दिया यह सबको दिखा लेकिन किसी ने इस बात का विरोध नहीं किया क्योंकि ऐसा करने से सेक्युलरिज्म का तमगा छीन लिया जाता. संघी साथी की तरफ से जिस तरह की बात लिखी गई वह आम कम्युनिस्टों पर दबाव के लिए ताने के रूप में इस्तेमाल की जाती है जिसके बाद कम्युनिस्ट बिना सोचे समझे कूद पड़ते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में 18 हजार विद्यार्थी हैं जिसमे से 8 हजार छात्राएं हैं. यह अनुपात किसी भी केन्द्रीय विवि के बराबर या उससे अधिक हो सकता है. 1960 में बनी मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में 2013-14 के मध्य 19 हजार किताबे सिर्फ लड़कियों के नाम जारी की गई.लैंगिक भेदभाव अगर होता तो लड़कियां मौलाना आज़ाद लाइब्रेरी में कैसे प्रवेश करती ?

यहां यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है की अल्पसंख्यक कट्टरता आखिर परिभाषित कैसे होगी. क्या बिना जाने समझे और तथ्यों को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर पेश करने के बाद क्या आम मुसलमान, इस तरह की आलोचना को पचा पाएगा. यदि मुस्लिम समाज में परिवर्तन या बुराइयों के प्रति जागरूकता जैसा कुछ करने की किसी ने सोची है आखिर वह क्यों तथ्यहीन प्रमाणों को जनता के सामने रखेगा. एएमयू किसी लड़की का ससुराल या हरियाणा के माँ की कोख नहीं है जहां लड़कियों के साथ अत्याचार हो रहा है. जैसा अधिकार बाकी केन्द्रीय विवि में है ठीक वही नियम कानून और कायदे वहां भी चल रहे हैं. सेक्यूलर बने रहने के लिए एएमयू की आलोचना से नुकसान सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों का होगा. उन्हें आपकी इन बातों के प्रति जवाबदेह होना पड़ जाता है. जोंक जिस्म पर चिपक जाता है तो खुद से नहीं छूटता, उसे निकालना पड़ता है. कथित कम्युनिस्ट, मुसलमानों के साथ जोंक जैसा बर्ताव कर रहे हैं. चिपकते हैं तो खून चूस कर ही मानते हैं. निकालना न निकालना तो बाद की बात है. भगवा सवाल उठाए तो समझ में आता है. लेकिन आपकी बौद्धिकता कहाँ चली गई जो आप भी बह जाते हैं प्रोपगेंडा के साथ.  एएमयू के कुलपति ने अपने उस बयान का खंडन किया है जिसे मीडिया बार बार दिखा रही है कि, ‘लड़कियों के आने से लड़कों की भीड़ बढ़ जाएगी.’ कुलपति का कहना है बातों बातों में यह बात व्यंग के लहजे में निकली थी. कहीं कोई लिखित नोटिस नहीं जारी की गई थी. ज़ुबान कई बार फिसल जाती है कुलपति साहब, लेकिन यूं भी मत फिसल जाने दीजिए की हम पर सवाल उठने लगे. अलीगढ़ मुस्लिम विवि भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए गौरव का सूचक है. इसके स्वर्णिम इतिहास और प्रगतिशील वर्तमान को बचाए रखिए क्योंकि भविष्य में इससे भी बड़े खतरे उठाने पड़ेंगे. यह तो कुछ भी नहीं.

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