Monday 10 November 2014

सौहार्द के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने की ज़रूरत नहीं है.

सौहार्द और भाईचारा न तो जेपी सीमेंट से टाईट होगा और न ही बिरला व्हाईट पुट्टी से जर्जर और छिली हुई तहज़ीब की रंगाई पोताई हो सकती है. सौहार्द का बस इतना सा मतलब है की हिंदू बनाम मुसलमान या फलाने बनाम ढिमकाने के बीच में से ‘बनाम’ या ‘विरूद्ध’ शब्द और इसकी अवधारणा पूरी तरह से निकाल फेंकी जाए.
ऐसा करने के लिए कुछ एन जी ओ काफी हो हल्ला मचाते हैं. असल में स्वार्थ या पैसे से भाईचारा और सौहार्द जैसे सूफी और फ़कीरी कांसेप्ट कभी नहीं आ सकते. हमारे यहां सांप्रदायिक सौहार्द के लिए अवार्ड दिए जाते हैं. मंच सजता है, लोग जुटते हैं. फिर से मंच सजेगा. लोग जुटेंगे. ये वही लोग हैं जो इससे पहले एक जगह इकट्ठे हुए थे. इस जुटान में कोई नया नहीं है. दस थे तो दस ही रहेंगे. क्योंकि सीमित संसाधन से असीमित समस्याओं का हाल कभी नहीं निकाला जा सकता.
भाईचारे और सौहार्द के लिए रजिस्ट्रेशन होगा.बस्ता,किताब,कापी कलम दी जाएगी. सब कुछ होगा बस उस मलंग की कमी होगी जो संत बन कर लोगों की भीड़ में गुम हो जाए. यहां अब कोई गुम नहीं होना चाहता. सबको फ्रंट पेज पर फोटू और ढेर सारा पैसा चाहिए. मैं ये नहीं कह रहा हूं की इस तरह की संस्थाएं बिल्कुल नकारा हैं लेकिन यह भी दर्ज किया जाए की इस तरह की संस्थाओं से सौहार्द या प्रेम जनता तक नहीं पहुँच पाता.
प्रेम सबको चाहिए. भारत एक प्रेम प्रधान देश है. यहां कपटी से क्रूर व्यक्ति भी हृदय से दो प्रतिशत कोमल होता है. इस कोमलता को जो भुला चुके हैं उन्हें याद करवाने के लिए कहीं रजिस्ट्रेशन करवाने की ज़रूरत नहीं है. बात कीजिए. समझाइए. बेहतर समाज का निर्माण हिंसा या आरोप प्रत्यारोप से नहीं हो सकता. सोशल मीडिया पर हर तरफ लूट मार का माहौल है. यहां जो जिस मंतव्य से आया है वह वही करेगा. बहुत से लोग आपस में झगड़ा करते हैं. बहुत से लोग एक दूसरे के धर्म को गालियाँ बकते हैं. किसी को समझ ही नहीं आ रहा है वो क्या कर रहा है. या फिर हो सकता है समझ बूझ कर लोग ऐसा कर रहे हों. जो समझदार हैं, तर्क और तथ्य को साथ रखते हैं उनका बहकना थोड़ा मुश्किल है पर देखा अमूमन यह जाता है की वे भी गले तक धंसे हुए हैं बेवजह की प्रतिस्पर्धा में. कुछ लोग मुझे यू ट्यूब के वीडियो भेज कर कहते हैं ये देखिए, यही सच है. मैं ऐसे लोगों का मैसेज पढ़ कर जवाब नहीं देता. जिन्होंने सूचना के इस बेछुट माध्यम पर भरोसा करने का मन बना लिया है वे घाटे में रहेंगे. अच्छा कुछ नहीं हो रहा है. सौहार्द और अमन के लिए कई मोर्चों पर साथ आने की ज़रूरत है. सौहार्द के लिए दिन रात एक कर देने वाले लोग कहते हैं ‘मोर्चों पर लड़ने की ज़रूरत है.’ किससे लड़ना है? लड़ कर जीतना चाहते हैं? तब तो कोई एक ही रहेगा. हारने वाला या जीतने वाला. कुछ ऐसा कीजिए की दोनों रहें और बेहतर बात के लिए रहें.

किसी भी तरह का कट्टरवादी इंसान किस हद तक कट्टर होगा. जान ले लेगा. ले लेने दीजिए. लेकिन जान लेने से पहले तो थोड़ा सा मौका देगा. बस उसी लम्हे में आप उसको भाईचारा जिसके बिना भारत का तसव्वुर नहीं किया जा सकता की बात कीजिए. बहुत समय है. लोग सुनेंगे. भड़काने के बजाए ठंडा कीजिए. व्यक्तिगत तौर पर खुद को ऐसा बनाइये की किसी को नुकसान न पहुंचे. तभी लोग साथ आयेंगे. लोगों का साथ आना ज़रूरी है. बेहद ज़रूरी.

2 comments:

  1. बहुत ही प्रभावशाली और यथार्थ के करीब

    ReplyDelete
  2. बहुत बढ़िया अनस भाई .....बधाई

    ReplyDelete