Monday 16 June 2014

हमने अपने बीच कुछ भी बाकी नहीं छोड़ा-1

हमने अपने बीच कुछ भी बाकी नहीं छोड़ा जिससे किसी नई कहानी की शुरुआत या बीते हुए की याद आ सके. मैं कमज़ोर था और उसका बार बार रोकना, बात करने की मिन्नतें करना मेरे प्रेम की परिधि से बहुत बाहर था. मैं चाहता था की मेरी अपनी गढ़ी गई प्रेम परिभाषाओं में वह शामिल हो जाए और उसका मानना था की हम उन बावले से ख्यालों  और रेखा के भीतर क्यों जिए. ऐसा नहीं है की वह रिवोल्यूशनरी प्रेमिका थी पर उसकी अपनी जीवन कहानियाँ थी जिसमे एक समय में  मैं समाहित हुआ तो उसे लगा यही है जो पार ले जाएगा पर जैसे जैसे समय बीतता गया उसे प्रेम की कसावट महसूस होने लगी. प्रेम एक समय के बाद या तो बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है या फिर आक्रमणकारी. कुछ लोगों का कहना है की प्रेम निस्वार्थ और पवित्र होता है उसमे किसी की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना नहीं शामिल होता, लेकिन ये सिर्फ कहने और लिखने की बाते हुआ करती हैं,क्योंकि इन्हें पढ़ कर हमें अच्छा लगता है और इसलिए हमारा मन हमेशा से सर्वश्रेष्ठ की तलाश में होता है ऐसे में वह कई बार ही नहीं बल्कि हर बार जीवन की सच्चाइयों पर पर्दा डाल कर जादुई और कभी न दोहराई गई कहानियों को जीने लगता है.  
पर्दे पर पड़ी लाईट और दिवार पर लगे स्पीकर की तरह प्रेम कहानियां नहीं हुआ करती, सब कुछ तय वहां होता है जहां किसी के निर्देशन में कुछ घंटे की एक फिल्म बन रही हो और वह अपने हिसाब से उसमे उतार चढ़ाव देता हुआ एक सुखद अंत की तरफ दर्शकों को खींच ले जाता है. हम अपनी स्वतंत्रता के पक्षधर होते हैं पर किसी दूसरे की नहीं, जिससे मन लग जाता है तो जी करता है उसका मन मेरे मन से जुड़ जाए या फिर बहुत आगे सोचा तो उसके मन का रिमोट अपने हाथ में लेने की हर सही और गलत कोशिश कर डालते हैं.
हर प्रेम का एक अंत होता है, कुछ का नहीं भी होता होगा लेकिन ज्यादातर प्रेम कहानियों का अंत शायद ऐसे ही हुआ होगा जैसे हमारा हुआ था. वह रोक रही थी और मैं चाहते हुए भी नहीं रुक रहा था क्योंकि उससे दूरी बननी ही थी यह उसे भी मालूम था, रिश्ते ज्यादा बिगड़ते उससे पहले उसमें से निकल आना ज्यादा सही लगा मुझे. अब मैं उभर रहा हूं, शायद किसी नई कहानी के इंतज़ार में जो बिल्कुल ऐसी ही होगी जैसे अभी अभी गुजरी.
प्रेम या तो होता है या फिर नहीं होता, इसका न होना कई बार असहज कर देता है लेकिन इसका होना भी बहुत बेहतरीन नहीं होता. प्रेम के शुरूआती दौर में पुरुष, स्त्री के मन के हिसाब से उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास करता हुआ दिखता है ताकि नुकीले मोड़ जल्दी से पार कर जाए परन्तु जैसे ही स्त्री के मन और शरीर पर उसका अधिपत्य जम जाता है वैसे ही वह हर छोटे बड़े मौकों पर रोक टोक और हां न की इबारत लिखने लगता है. क्या यही प्रेम है, जहां किसी दूसरे की ज़िंदगी के पहिए को कोई दूसरा अपने हिसाब से गति प्रदान करने की बात करे, जहां गति होगी वहीं ठहराव भी होगा, तो क्या जिसे हम चलते रहने का नाम दे रहे थे वह असल में एक तरह का रुकना था. हां शायद .
मैं या आप सिर्फ अपने मन के मालिक हुआ करते हैं, ऐसे में हम जो सोचते हैं, करते हैं वह निसंदेह हमारा मौलिक फैसला हुआ करता है तो यह फैसला किसी दूसरे के जीवन के आयाम भला तय कैसे करता होगा, यह न तो मैं सोच पाया न ही वह, शायद हम प्रेम में थे इसलिए. अब जब इससे निकल आएं हैं तो सुकून की सांस महसूस होती है पर वह बुरा भी तो नहीं था जो भी था. हम एक दूसरे का ख्याल ही तो रख रहे थे, क्या यह बात हम दोनों स्वीकार करेंगे अगर करते हैं तो फिर ख्याल रखना बिखराव की नियति कैसे बन गई, शायद हम उस दौरान ख्याल से ज्यादा एक दूसरे की ज़िंदगी में दखल देने लग गए थे. न उसे बंधना पसंद था न मुझे, मैंने बांधा कब था, या फिर उसने तो ऐसा कभी भूल कर भी नहीं किया फिर आज़ाद या आजादी का सवाल हमारे बीच कहाँ से आ गया, नहीं नहीं ...हमें जाना था एक दूसरे से दूर, अंत यही था जो हमारे वर्तमान को लील गया, जो हमारी कहानी के पूर्ण होने से पहले अधूरा छोड़ गया. पर यह अंत भला कतई नहीं था क्योंकि हमें साथ रहना था एक दूसरे का दोस्त बन कर, बेनाम से रिश्ते के लिए, मैंने कोशिश नहीं की और उसने यह सोचा की लौटेगा ज़रूर. मैं भी उसके लौटने का इंतज़ार करता रहा और वह भी. लेकिन हम दोनों ने एक दूसरे को इसका एहसास नहीं होने दिया की हम बेसब्रों की तरह एक दूसरे की ताक में बैठे हैं कि कोई कहीं से नज़र भर आ जाए और थाम लें हाथ.

चलो ,कोई बात नहीं मैं तुम्हे उस भीड़ में तलाशूंगा जहां पहली दफा नाराज़ हो कर साथ छोड़ा था और तुम खोजने आई थी, हर बार अच्छे मौके तुम उड़ा ले जाती हो इस बार ये मौका अपने से दूर नहीं जाने दूंगा बस तुम आना उस भीड़ में.

7 comments:

  1. आपकी fan थी....
    अब आपके लेखनी की भी बन गयी ....
    बहुत खूब .... :)

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  2. रिश्ते की सच्चाई को इतनी गहराई से जान लेने के बाद भी आपको उनका इंतज़ार है और निसंदेह उन्हें भी होगा, येही प्रेम है.एक शानदार अभिव्यक्ति.अल्लाह करे आपका इंतज़ार जल्द ख़तम हो..

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  3. रिश्ते की सच्चाई को इतनी गहराई से समझने के बाद भी आपको उनका इंतज़ार है और उन्हें भी रहा होगा, येही प्रेम है.
    शानदार अभिव्यक्ति..अल्लाह करे आप लोगो का इंतज़ार जल्द खत्म हो.

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  4. प्रेम एक समय के बाद या तो बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है या फिर आक्रमणकारी.

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  5. प्रेम एक समय के बाद या तो बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता है या फिर आक्रमणकारी.

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  6. dil ko chhoo lene wali tahreer... rishton ki gahrai aur unse bikhrti hui khushbuon me basi hui tahreer... aap ka andaaz mujhe bahut pasan hai... allah kare zore-qalam aur ziyaada....

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  7. चलो ,कोई बात नहीं मैं तुम्हे उस भीड़ में तलाशूंगा जहां पहली दफा नाराज़ हो कर साथ छोड़ा था और तुम खोजने आई थी, हर बार अच्छे मौके तुम उड़ा ले जाती हो इस बार ये मौका अपने से दूर नहीं जाने दूंगा बस तुम आना उस भीड़ में. बेहद उम्दा...........

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