Monday 26 May 2014

इस उम्मीद के साथ की ख़ामोशी पढ़ लें एक दूसरे की.

किसी ख्वाब के देखने और उसके पूरे होने में वक्त अगर कम खर्च हो तो लगता है ज़िंदगी खूबसूरत है. हम या आप या फिर कोई और जिसने अपनी ज़िंदगी में सोते जागते ख्वाब देखें और अगले ही पल उन्हें पूरा भी कर डाला. इन हालात में सपने देखने का काम सबसे उम्दा और बेहतरीन लगने लगता है. हमारी दोस्ती भी किसी ख्वाब से कम नहीं और उसमे होने वाले उतार चढ़ाव उन हिंदी फिल्मों की स्क्रिप्ट सरीखें हैं जहां एक ही उम्र के कुछ नौजवान लिखी लिखाई कहानी पर पूरे दो घंटे बिता देते हैं. उसमे एक प्यारी सी शुरुआत होती ,थोड़ा सा अप्स एंड डाउंस ,कलाइमेक्स में लड़ाई झगड़े,रूठना-मनाना और फिर आखिर में हैप्पी एंडिंग. पर यहां आखिर जैसा कोई मामला नहीं ,हमने मिल कर तय किया है कि जो हमसे पहले के लोग हमारी ज़िंदगियों में आएं और इस वादे के साथ फिर कभी वापस नहीं आएं कि ‘हम हमेशा साथ रहेंगे’ से बिल्कुल अलग कहानी लिखेंगे. हमारे आस पास या फिर हमारे साथ होने वाली घटनाएं हमेशा के लिए एक सबक दे जाती हैं. बचपन की नर्सरी क्लास में मिली तबस्सुम हो या फिर जावेद,आज वो जाने कहाँ हैं मुझे या उन्हें भी नहीं मालूम पर मैंने उन्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त माना था और कहा भी था की ये दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी. ठीक यही वादा शायद सातवी दर्जे में पहुंचने के बाद अतुल से किया था ,आपने भी किसी न किसी से किया ही होगा, न सही नर्सरी या सातवीं क्लास में, लेकिन कोई तो रहा ही होगा, खेल के मैदान पर साथ खेलने वाला, ट्यूशन पढ़ने वाला, टिफिन शेयर करने वाला या फिर वो लड़की जो रिक्शे में ठीक बगल बैठा करती थी और ट्राली जब किसी उंचाई वाली जगह पर पहुँचती ,तो उसके बदले ट्राली को धक्का लगाने का जी चाहता. हां, मैं उन्ही भुला दिया गये चेहरों की बात कर रहा हूं जिनसे दूर जाने का कभी मन था ही नहीं पर हालात ने चीजों को यूँ बुना की सब दूर होते गये यहां तक की ट्वेल्थ और ग्रेजुएशन के वे दोस्त भी जो बिना हमारे कालेज नहीं जाते थे. ये ज़िंदगी है ही ऐसी, चाह कर भी लोग साथ नहीं रह पाते. अलग अलग शहरों में हमारी या उनकी ज़रूरतें उनका इंतज़ार करती हैं, देश कहां इतनी तरक्की कर पाया है की सब को एक ही जगह खाने और रहने का ठिकाना दे सके.
खैर, बात थी दोस्ती की और दोस्ती में किये वायदों पर मैं न तो भरोसा करता हूं और न ही किसी को अपने वादे की डोर में बांधना पसंद करता हूं,वो क्या है न इनके टूटने पर हम जैसे लोग टूट जाते हैं.
अंकिता और नम्रता से हमेशा साथ रहने की कोई कसम नहीं ली है और न तो अंकिता ने मुझसे. लेकिन धीरे धीरे एक साल होने को हैं वो भी अलग-अलग शहरों में रहते हुए,अलग ज़रूरतों और ख़्वाबों के होते हुए हम बिल्कुल अलग नहीं हैं. मेरी नाराज़गी और मेरी ख़ामोशी यहां तक की मेरी हर ऐसी वैसी बात जिसे कोई और न सुन सके वो इन दोनों को सुनाता हूं, तो ये भी कौन सा मुझसे कम हैं, रात को जागने वाली अंकिता और मेरे जैसे वक्त पर सो जाने वाली नम्रता भले एक दूसरे से अलग हों पर एक ऐसी जगह भी होती है जहाँ हर बात मिल कर एक हो जाती है और वह है बिना किसी शर्तों और वायदे वाली दोस्ती. अंकिता कहे चाहे जो कुछ, पर वो ये कहना नहीं भूलती, की मुझे किसी से कोई उम्मीद नहीं,और यह बोलते वक्त वह भूल जाती है की उसकी आवाज़ में जो एक खालीपन है वो शायद मैं पहचान लेता हूं इसलिए उसकी अनकही उम्मीद बनने की पूरी कोशिश भी करता हूं.
हम कसम और उन कसमों को निभाने में तनिक भी यकीन नहीं रखते और ऐसा इसलिए नहीं है की हमारे ह्रदय कठोर हैं या फिर हमें दुनिया का अंतिम सच मालूम चल गया है ,यह सिर्फ इसलिए है कि समय और हालात चीजों को बनाते और बिगाड़ते हैं और ऐसे में किया गया कोई एक वायदा भी टूट गया तो हमारा बच पाना मुश्किल होगा. जरा सी दूरी को बहुत दूर बताने और बताते वक्त के अंदाज़ से डराने वाली अंकिता को उसकी पहली नौकरी वाकई बहुत दूर मिल गई,नम्रता तो उतनी दूरी हर रोज़ यूँही घूमते हुए निकाल देती है. तुम दोनों से सिर्फ इतना कहना है कि मैं रहूँ या न रहूँ, अपने उन ख़्वाबों को ज़रूर पूरा करना जो देखें हैं. और ये मैं अच्छे से जानता हूं कि अंकिता ,तुमसे हर वो चीज़ हो जाएगी जिसके बारे में तुम एक बार सोच लेती हो.

मेरे हिस्से में तुम दोनों की दोस्ती है मैं उतने में ही खुश हूं, अगर कभी नाराज़ हो जाया करूं तो समझा करो डोज थोड़ा हाई करने की ज़रूरत है,बस और क्या ....बाकी सब कुछ लिख कर बयान कर दूंगा तो ख़ुशी के मारे बेहोश हो जाओगी इसलिए बस इतना ही ..