tag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post6400032917922780282..comments2023-05-01T04:58:13.688-07:00Comments on नई डायरी : यहां तो सब मुस्कुरा कर मिलते हैं पर बताते नहीं कि क्यों मुस्कुरा रहे हैंAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/14784589132415931335noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-5914547960869200012014-03-18T16:56:08.990-07:002014-03-18T16:56:08.990-07:00खुशदीप जी के कहने पर आपने मिलने चले आए मुस्कुराते ...खुशदीप जी के कहने पर आपने मिलने चले आए मुस्कुराते हुए। मुस्कुराते हुए ही आपकी पिटाई का आनंद भी ले लिया...पत्तों पर दौड़ने की यादें भी ताजा कर लीं...साइकिल से धीरे मार खाकर भागते घोड़े या घोड़ी की याद भी कर ली...ये भी मुस्कुराते हुए...चोरी के पैसे से चटपटी चाट से लेकर समोसे तक याद कर लिए ..सब मुस्कुराते हुए...दुनिया का पता नहीं ..हम तो इसलिए मुस्कुराते हैं क्योंकि रोते हुए पैदा हुए थे...अमिताभ अंकल की बात मानते हुए सोचते हैं कि मुस्कुराते हुए जाएंगे ..तो कम से कम जाने के बाद ही सही..दुनिया मुकद्दर का सिकंदर तो कहेगी ना। तो मुस्कुराते हुए विदा लेता हूं..फिर आने के लिएRohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-45743085063807277372014-03-18T12:36:27.087-07:002014-03-18T12:36:27.087-07:00अनस भाई आपके इस ब्लॉग को पढ़ कर कुछ पुराने पल ताज़ा ...अनस भाई आपके इस ब्लॉग को पढ़ कर कुछ पुराने पल ताज़ा हो गए... आपको आपके मोहल्ले में आने वाले बुज़ुर्ग कबाड़ी ने पट्टी खिलाई तो हमें शमीम भाई ने समोस...मुझे आज भी याद है मोहल्ले में शमीम भाई समोसे का ठेला लेकर आते रोज़ शाम को उनके आना का इंतज़ार मोहल्ले के हर बच्चे को रहता वो अपना ठेला पर राखी हुई कढाई को समोसा तलने वाले कलछुल से बजाते हुए मोहल्ले के अंदर आते और हम सब बच्चे दौड़ कर समोसा खरीदने चले जाते उस 50 paise के एक समोसे में इतना जायका होता जैसे की इस दुनिया में वो आखिरी सबसे लज़ीज़ चीज़ हो और हर शाम यही नियम रहता हम सब बच्चो का और हाँ उस वक़्त मेरी उम्र कुछ 6 या 7 साल थी एक शाम हमने जैसे ही उनके कढाई की आवाज़ सुनी किताब कॉपी बंद करके चाट की तरफ दौड़ लगा कर झांके के देखा तो शमीम भाई अपने समोसे के ठेले को लिया मोहल्ले में घुस रहे थे फिर हमने किताब वहीँ पटकी और डैडी के पास दौड़ कर गए उनसे paise मांगे पर ना जाने क्यों आज डैडी ने हमे paise देने से मन कर दिया अब हम बेचारे करते तो क्या करते समोसे का ठेला नजदीक अत जा रहा था और कढाई की आवाज़ हमारे कानो में बहुत तेज़ तेज़ सुने दे रही थी ऐसा लग रहा था मनो समोसे का ठेला उस पर रख्खी कधी उसपर जोर जोर से पटखा जा रहा कलछुल और कढाई में पड़ा समोसा सब हमको बुला रहे है फिर अच्चानक याद आया अरे मरियम paise तो mumma क पास भी होते है सोचा उनसे मांग लेते हैं फिर सोचा अगर उन्होंने भी नहीं दिया तो पर समोसा भी खाना ज़रूरी है आखिर दुनिया की आखिरी लज़ीज़ चीज़ क हाथ से कैसे जाने दे सकते थे इसलिए इधेर उधर देखने के बाद सन=बसे बचते बचाते हमने mumma के पर्स से एक 50 का नोट निकाल ही लिया और पहुच गए शमीम भाई के ठेले पर समोसा खाने समोसा देख कर ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और तो और सहायद आज शमीम भाई कुछ ज़यादा ही कुश थे हमसे रोज़ एक ही समोसा देते थे पर आज उन्होंने दो समोसे और खूब साड़ी हरी धनिया की चटनी भी दाल कर दी थी उस एक पचास की नोट के बदले दोनों समोसे सफा चाट करके जब हम घर वापिस ए तो शायद भाईजान ने हमे बहार समोसा खाते देख लिया था घर में घुसते ही उन्होंने दरवाज़े पर ही रोक लिया और पूछने लगे की समोसा कहाँ से लिया बीटा पहले तो हमने अना कानी करने की कोशिश की पर बाद में सच कुबूल न पड़ा अल्लाह कसम इतनी पिटाई हुई उस दिन से आज के दिन तक 50 की नोट से बहुत दर लगता है पर अल्लाह जन्नत नसीब करे हमारी दादी अम्मी को जिन्होंने हमे बच्चा लिया वरना शायद उस दिन हमको जन्नत नसीब हो चुकी होती Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18352464576028759544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-28069515450753728822014-03-18T12:33:02.166-07:002014-03-18T12:33:02.166-07:00अनस भाई आपके इस ब्लॉग को पढ़ कर कुछ पुराने पल ताज़ा ...अनस भाई आपके इस ब्लॉग को पढ़ कर कुछ पुराने पल ताज़ा हो गए... आपको आपके मोहल्ले में आने वाले बुज़ुर्ग कबाड़ी ने पट्टी खिलाई तो हमें शमीम भाई ने समोस...मुझे आज भी याद है मोहल्ले में शमीम भाई समोसे का ठेला लेकर आते रोज़ शाम को उनके आना का इंतज़ार मोहल्ले के हर बच्चे को रहता वो अपना ठेला पर राखी हुई कढाई को समोसा तलने वाले कलछुल से बजाते हुए मोहल्ले के अंदर आते और हम सब बच्चे दौड़ कर समोसा खरीदने चले जाते उस 50 paise के एक समोसे में इतना जायका होता जैसे की इस दुनिया में वो आखिरी सबसे लज़ीज़ चीज़ हो और हर शाम यही नियम रहता हम सब बच्चो का और हाँ उस वक़्त मेरी उम्र कुछ 6 या 7 साल थी एक शाम हमने जैसे ही उनके कढाई की आवाज़ सुनी किताब कॉपी बंद करके चाट की तरफ दौड़ लगा कर झांके के देखा तो शमीम भाई अपने समोसे के ठेले को लिया मोहल्ले में घुस रहे थे फिर हमने किताब वहीँ पटकी और डैडी के पास दौड़ कर गए उनसे paise मांगे पर ना जाने क्यों आज डैडी ने हमे paise देने से मन कर दिया अब हम बेचारे करते तो क्या करते समोसे का ठेला नजदीक अत जा रहा था और कढाई की आवाज़ हमारे कानो में बहुत तेज़ तेज़ सुने दे रही थी ऐसा लग रहा था मनो समोसे का ठेला उस पर रख्खी कधी उसपर जोर जोर से पटखा जा रहा कलछुल और कढाई में पड़ा समोसा सब हमको बुला रहे है फिर अच्चानक याद आया अरे मरियम paise तो mumma क पास भी होते है सोचा उनसे मांग लेते हैं फिर सोचा अगर उन्होंने भी नहीं दिया तो पर समोसा भी खाना ज़रूरी है आखिर दुनिया की आखिरी लज़ीज़ चीज़ क हाथ से कैसे जाने दे सकते थे इसलिए इधेर उधर देखने के बाद सन=बसे बचते बचाते हमने mumma के पर्स से एक 50 का नोट निकाल ही लिया और पहुच गए शमीम भाई के ठेले पर समोसा खाने समोसा देख कर ख़ुशी का ठिकाना नहीं था और तो और सहायद आज शमीम भाई कुछ ज़यादा ही कुश थे हमसे रोज़ एक ही समोसा देते थे पर आज उन्होंने दो समोसे और खूब साड़ी हरी धनिया की चटनी भी दाल कर दी थी उस एक पचास की नोट के बदले दोनों समोसे सफा चाट करके जब हम घर वापिस ए तो शायद भाईजान ने हमे बहार समोसा खाते देख लिया था घर में घुसते ही उन्होंने दरवाज़े पर ही रोक लिया और पूछने लगे की समोसा कहाँ से लिया बीटा पहले तो हमने अना कानी करने की कोशिश की पर बाद में सच कुबूल न पड़ा अल्लाह कसम इतनी पिटाई हुई उस दिन से आज के दिन तक 50 की नोट से बहुत दर लगता है पर अल्लाह जन्नत नसीब करे हमारी दादी अम्मी को जिन्होंने हमे बच्चा लिया वरना शायद उस दिन हमको जन्नत नसीब हो चुकी होती Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/18352464576028759544noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-7833765527947425332014-03-15T09:04:09.085-07:002014-03-15T09:04:09.085-07:00पूरा लेख शानदार था, मगर इन कलिमात मे एक दर्द छुपा ...पूरा लेख शानदार था, मगर इन कलिमात मे एक दर्द छुपा है<br /><br />"ये देश मेरा ,इंक़लाब का नारा, मेरा रंग दे बसंती चोला जैसे गाने को सुन कर बुद्धि भले न खुल पाती हो पर जाने क्यों हाथों के रोयें खड़े हो जाते थे. राष्ट्रवाद था यह या फिर देशद्रोह तब कहाँ पता था.,"md zakariya khanhttps://www.blogger.com/profile/11768571480482557568noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-36802113381100104992014-03-15T07:40:25.998-07:002014-03-15T07:40:25.998-07:00yadon ki buniyad se sab yadein nikal lae ho... kuc...yadon ki buniyad se sab yadein nikal lae ho... kuchh bachpan nikal lae ho :)Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15614453902071170086noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-84411198049883909752014-03-14T11:09:59.289-07:002014-03-14T11:09:59.289-07:00Bhai kadak haan.....choo gya...ekdummBhai kadak haan.....choo gya...ekdummAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/17811677640086137540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-88619030532370750622014-03-14T11:09:26.993-07:002014-03-14T11:09:26.993-07:00Bhai....kadak haann......choo gya...Bhai....kadak haann......choo gya...Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/17811677640086137540noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-87460222701247611812014-03-14T09:45:13.491-07:002014-03-14T09:45:13.491-07:00पहले के रिश्ते दिल से होते थे| छोटकी चुंगलिया से ...पहले के रिश्ते दिल से होते थे| छोटकी चुंगलिया से खुट्टी होई जात रही धमकी के साथ कि तुमरे अब्बू से कह देबे वरना अभिन ई बल्ला दईदो हमका, बहुत ही अच्छी कृत हैं हज़रत अनस साहब दामाद बरकातुहुAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/01405298732108987469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4933170775779781065.post-78695629406931430612014-03-14T07:03:39.151-07:002014-03-14T07:03:39.151-07:00वो दुनिया बहुत हसीन थी , वो सारे यार दोस्त भी ईमा...वो दुनिया बहुत हसीन थी , वो सारे यार दोस्त भी ईमानदार थे जो छोटी छोटी बात में जी जान से जुड़े रहते थे. दोस्त कौन था और कौन दुश्मन उसकी पहचान हो जाती थी. यहां तो सब मुस्कुरा कर मिलते हैं. पर बताते नहीं की क्यों मुस्कुरा रहे हैं. हम नाराज़ होते थे तो अपनी साइकिल पर किसी को बिठाते नहीं थे और न तो अपने चबूतरे पर चढ़ने देते थे.<br /><br />अनस भाई, पहले रिश्ते मुहब्बत के लिेए होेेते थे और चीज़ें इस्तेमाल के लिए...अब चीज़ें मुहब्बत के लिए होती हैं और रिश्ते इस्तेमाल के लिए...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.com